Sewa Nyaya Utthan Foundation

Service. Justice. Inclusion.

11 मई 2023 की सुबह हम सेवा न्याय उत्थान की ओर से जोधपुर पहुंचे।। वहां से नजदीक गंगाना गाँव मे हम गए। वहां हमारी मुलाकात देहराज भील से हुई, जो खुद विस्थापित हैं और पिछले 12 सालों से यहीं रह रहे हैं। वह हमें पाकिस्तान विस्थापित परिवारों के दो शिविरों में ले गए, जो एक दूसरे से थोड़ी दूरी पर हैं।

पहले कॅम्प मे हमे 5 पाक विस्थापित लोग मिले जो वहां रहते थे। जिनमे भैराराम भील, हादुराम भील और डेहडाराम भील से हमने बात की।

(भैराराम भील)

भैराराम भील (उम्र 45 वर्ष) पिछले दस वर्षों से मिट्टी के घरों में रहते हैं। उन्होंने हमें बताया कि स्थानिक प्रशासन ने कुछ दिन पहले उनके घरों को ध्वस्त कर दिया था। नतीजतन, वे चिलचिलाती गर्मी में आश्रय के बिना रहने को मजबूर हो गए। भीषण गर्मी के कारण बच्चे और बड़े-बूढ़े बीमारियों से जूझ रहे हैं।

लेकिन सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन द्वारा दी गई अस्थायी आश्रय सहायता से उन्हें बहुत राहत मिली। उन्होंने मदद के लिए हमें धन्यवाद दिया और अपनी भाषा मारवाड़ी में हमसे कहा, “स्वाति दीदी रो घनों घनों, Thank You”। “दीदी ने उनके सिर पर छत दी है, अब पानी। यह वही समस्या है। हमें यकीन है कि केवल दीदी ही इसे हल कर सकती हैं।”

( टूटी हुईं पानी की टंकि जिसका उपयोग पीने और अन्य कामों के लिए पानी रखने के लिए किया जा रहा था )

प्रशासन द्वारा जब घर तोड़े गए तो तब उनकी पानी की टंकियां भी तोड़ दी गई थी।

( हादुराम भील )

उन्होंने कहा कि इस गर्मी में 500 लोगों के लिए केवल चार पानी की टंकियां थीं। इसमें दो छोटे टैंक भी हैं।

(डेहडाराम भील)

डेहडाराम ने कहा कि बड़ी उम्मीद के साथ अपना देश समझकर यहां जोधपुर आए है। पाकिस्तान से जान बचाने के लिए यहां आना पड़ा। यहां गला सूखने पर पानी पीने का भी सोचना पड़ता हैं, ताकि पानी खत्म ना हो जाए। घर टूटने के बाद तुरंत दीदी ने जोधपुर आ कर यह बनवा दिया। अब पानी का भी हो जाए तो बहुत अच्छा होगा। 

फिर हम दूसरे कॅम्प की तरफ निकले, 

(जेमाराम भील) 

दूसरे जोधपुर कैम्प पर हमे जेमाराम भील मिले। उन्होंने कहा की हमे यह जो कुछ मिला हैं वो सारा स्वाति दीदी ने दिया हैं।

गर्मी कभी-कभी 48 डिग्री पार हो जाती हैं। बड़ो का समझ सकते हैं लेकिन बच्चे बीमारी से ही मर जाते, लेकिन अब छाव मिली हैं।

(रोखमन भील)

उनके घर के आसपास कई झुग्गियाँ आधी बनाई हुईं दिखी। एक अधूरी झुग्गी मे बैठी बुजुर्ग महिला रोखमन भील ने बताया कि, “दीदी ने झुग्गियों का सामान देकर बहुत अच्छा किया। घर के लोग दिन भर खेतों में मजदूरी करते हैं। रात मे लौटते हैं तो अंधेरा हैं और सब थके होते हैं। इसलिए झुग्गी का काम रोज थोड़ा थोड़ा करते हैं। इसी कारण कई झुग्गियां अधूरी हैं।”

उनके सामने अपनी झुग्गी बना रहे दौलतराम से हम मिले, जो आज काम से छुट्टी पर थे। हम भी उनके साथ इस कार्य मे लग गए।

(दौलतराम भील, जो अपनी झुग्गी बना रहे थे)

दौलतराम ने हमे बताया कि दिन भर घर के सभी बड़े और औरते खेतों मे मजदूरी करने जाते हैं। लेकिन बच्चों को घर ही छोड़ना पड़ता हैं। सभी बच्चे मिलकर दिन भर इधर-उधर बैठे रहते हैं। उनको छाव मिले इस कारण एक झुग्गी आज ही तयार करनी होगी। इसलिए वह छुट्टी पर हैँ।

सामने उनके भाई की झुग्गी मे सभी बच्चे बैठ कर ड्राइंग बना रहे थे। जब हमने विक्रम, अजय और रोहित से जब पूछा की “आपको क्या खेलना पसंद हैं ?” तो उसने बताया की “हम ज्यादा खेलते नहीं क्यूँ की खेलने से गर्मी से धूप में प्यास लगती हैं” और पानी कम होता हैं। 

बच्चों की इस बात ने हमें भावुक कर दिया।

(हरे रंग के सलवार मे बैठे मिश्रीरामजी भील, उनके दाएं तरफ अमलिकी भील और अर्जुन )

शाम को हमने 1000 लीटर कपैसिटी की और 4 लेयर क्वालिटी की 9 पानी की टंकिययों की ऑर्डर दी जिनकी हमे दूसरे दिन डिलिवरी मिलने वाली थी ।

दूसरे दिन हम स्पोर्ट्स का सामान और खेलघर बनाने के लिए सीमेंट लेने के लिए निकले। बच्चों के लिए हमने:

2 कैरम बोर्ड, 
4 फुटबॉल ,
3 क्रिकेट बेट,
8 रोप जम्प,
2 बैडमिंटन, रिंग,
लुडो,
सांपसीडी ,
कई गेंद खरीदी।

साथ ही हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला और शब्दों के चार्ट, भारत का नक्शा जैसी पढाई का समान भी खरीदा।

बच्चों का सामना लेने के बाद हम खेलघर के लिये त्रिपाल, बांस बजरी और सीमेंट लेने गए सारा सामान लेकर हम बस्ती पहुचें 

सब सामान लेने के बाद हमने खुद ही खेलघर बनाने का काम शुरू किया।  

करीब 3 बजे तक हमने नीव का काम पूरा किया। तब तक पानी की टंकियां भी पहुंच गई थी। उन्हें देख कर बच्चे बहुत खुश हुए। टंकियां छोटी बस्ती मे एक जगह और दूसरी बस्ती मे 8 अलग जगह पर स्थापित की गयी। सभी टंकियों मे पानी भरा गया।

(पानी की टंकियां उठाने के लिए बस्ती मे बड़े लोग ज्यादा ना होने के कारण बच्चे खुद ही टंकियां उठाने मे मदत करते हुए)

टंकियों और खेलने की सामान की खुशी में 500 लीटर रूहफ़ज़ा शरबत हमनें बनाया। शाम तक बस्ती के सभी लोग आ चुके थे। सभी ने शरबत का आनंद लेते हुए सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन को धन्यवाद दिया।

जोधपुर से जाने से पहले बस्ती के बुजुर्गों ने सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन को धन्यवाद किया।

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एसएनयूएफ और पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी जो जोधपुर में बस रहे हैं

सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन (एसएनयूएफ) पाकिस्तान से विस्थापित हिंदू शरणार्थियों के पुनर्वास में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। संगठन इन परिवारों को आश्रय सहायता प्रदान कर रहा है, यह सुनिश्चित करते हुए कि कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद उनके सिर पर छत हो। एसएनयूएफ इन विस्थापित परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा केंद्र भी चलाता है, जो उन्हें मुफ्त शिक्षा और बेहतर भविष्य बनाने के अवसर प्रदान करता है। इन कमजोर समुदायों का समर्थन करने के लिए संगठन की प्रतिबद्धता सराहनीय है, और यह देखना प्रेरणादायक है कि उनकी पहल का इन परिवारों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।